Monday, April 13, 2009


मांगी थी दुया आशियाने की,
चल पड़ी आंधियां ज़माने की,
मेरे गम कोई समझ सका,
क्यूंकि मेरी आदत थी मुस्कुराने की !

6 comments:

नीरज गोस्वामी said...

बबली जी आज आपके ब्लॉग पर आ कर बहुत अच्छा लगा. आप न सिर्फ अच्छी शायरी करती हैं बल्कि उसे उतने ही खूबसूरत अंदाज़ में सजाती भी हैं...शायरी के साथ साथ आप के चित्र भी बोलते हैं...लाजवाब. मेरी बधाई स्वीकार करें.
नीरज

sujata sengupta said...

very very good Urmi..this one is for your smile..as always full 1000 watts!!

मोहन वशिष्‍ठ said...

बबली जी बेहतरीन शायरी है

Arvind Gaurav said...

sahi kaha aapne par dard mitane ki dava bhi to muskurana hi hai....so always keep smiling.
bahut achha likha hai aapne.

pooja said...

bahut badiya.......

M VERMA said...

ये बोलती हुई तस्वीर
उस पर शायरी की तासीर
बहुत खूब