Tuesday, March 31, 2009


लहर आती है, किनारे से पलट जाती है,
याद आती है, दिल में सिमट जाती है,
दोनों में फरक सिर्फ़ इतना है,
लहर बेवक्त आती है और याद हर वक्त आती है!

7 comments:

नवनीत नीरव said...

अच्छी पंक्तियाँ हैं .इनका विस्तार जरूर करियेगा.
नवनीत नीरव

Amit K Sagar said...

aapkee shayaree ko padhkar AGAM KUMAR NIGAM (father of Sonu Nigam) kaa geet yaad aa gyaa...mere khayal se aisaa na ho! yahee competition hai aaj kii!
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achchaa likhaa hai aapne. keep it up.
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mere blog par aakee krapyaa mujhe bhi maargdarshit karen!

Anonymous said...

sundar...
please visit

paraavaani.blogspot.com

Gurmeet Brar said...

There is scope for extension which is imminent as evident from your efforts.

Deepak "बेदिल" said...

आज इस कदर हेरान हुआ हूँ यहाँ आकर
जेसे खुश होते है बुडे मोत पाकर
जब यहाँ आना ही छोड़ दिया था हमने
तुम भी रोए थे कही तनहा जाकर..बेदिल.

shyam gupta said...

यादों के समुन्दर हें, यादें क्या हैं--

यादें क्या हैं
मन की लाइब्रेरी मैं रखे हुए ,
पुस्तकें, पत्र्कायें,सन्दर्भ ग्रन्थ या सी.डी.,
जिन्हें हम जब चाहें निकाल कर
या माउस क्लिक करके,
देख लेते हैं, ऒर जी लेते हैं,
उन भूले बिसरे छ्णों को ।

shyam gupta said...

mere blog-the world pf my thoughts par aapkaa swaagat hai.