काश ये ज़ालिम जुदाई न होती,
रब्बा तूने ये चीज़ बनाई न होती,
न हम उनसे मिलते, न प्यार उनसे होता,
तो ये ज़िन्दगी जो अपनी थी, वो परायी न होती!
रब्बा तूने ये चीज़ बनाई न होती,
न हम उनसे मिलते, न प्यार उनसे होता,
तो ये ज़िन्दगी जो अपनी थी, वो परायी न होती!
2 comments:
y to mere p thik baithta hai
कुछ प्रख्यात शायरों को पढ़ो. जिन्होंने दीन-दुनिया-इश्क़ पर लिखा...हालांकि आपने पढ़ा ही होगा, तो मेरा फिर से कहना का अभिप्राय तो निश्चित ही आप समझ जाएँगीं.
---
जारी रहें.
---
हाँ, मैंने सन्देश किया था, क्या आपको मिला...बताना ज़रा...
Post a Comment