Wednesday, April 29, 2009


हर शाम कह जाती है एक कहानी,
हर सुबह ले आती है एक नई कहानी,
रास्ते तो बदलते हैं हर दिन लेकिन,
मंजिल रह जाती है वही पुरानी !

14 comments:

Anil Sawan said...

being mushy here? :)

अभिन्न said...

मंजिलें अपनी जगह है रास्ते अपनी जगह

sujata sengupta said...

kahan se chale kahan ke liye..yeh kahabar nahin thi magar..koi bhi sira jahan jaa mila wahi tum miloge...raaste jitne bhi badle..manzil to hamesha saaf hain..

vijaymaudgill said...

तूं ही हैं मेरा राह
ते तूं ही हैं मेरी मंज़िल
मैं तेरे तों ही शुरु
ते तेरे ते ही ख़त्म
बहुत अच्छा लगा आपको पढ़ना।

Neeraj Kumar said...

हर सुबह ले आती है एक नई कहानी...


साथ में कुछ नई यादें,

जो हंसाती भी है और करतीं गमगीन भी।

धन्यवाद् मेरे ब्लॉग पर टिप्पणियों के लिए।

शोभना चौरे said...

bahut khub

anilbigopur said...

ishk mohbat to sabhi karte hain. gum-e-judai se vo sabhi darte hain.hum to na ishk karte hain na mohbat karte hain bus APNO ki ek smile ke liye comment karte hain.

Harshvardhan said...

gagar me sagar

मोहन वशिष्‍ठ said...

हर शाम कह जाती है एक कहानी,
हर सुबह ले आती है एक नई कहानी,
रास्ते तो बदलते हैं हर दिन लेकिन,
मंजिल रह जाती है वही पुरानी !

वाह जी वाह बिल्‍कुल सार्थक और सटीक लिखा है आपने बेहतरीन

बहुत बहुत शुभकामनाएं निरंतरता के लिए

अनुपम अग्रवाल said...

हर शाम क्यों अब लगती है सुहानी
रंग भी सुनाते हैं एक नयी कहानी

मंज़िल नहीं मिल पाती और साथ में

रास्ते भी बदल कर करते हैं मनमानी

manu said...

ye kya kam hai ki raaste to roj naye milte hain,,,,,?

रवीन्द्र दास said...

kya kah rahi hain aap?

RAJ SINH said...

HAI VAHEE RAAH BHEE, MANZIL BHEE , KAHANEE BHEE VAHEE .
JIS TARAF LE KE CHALE, CHAL TOO ,RAWAANEE BHEE VAHEE .

TERE HAATHON ME BANDHE SAATH KEE HASRAT LEKAR,
HAI TERE SAATH MUKADDAR BHEE, JAWANEE BHEE VAHEE .

डॉ. मनोज मिश्र said...

मंजिल रह जाती है वही पुरानी !...
यही सच है .यथार्थ से लबरेज रचना .