Tuesday, December 8, 2009


राख से धुआं उड़ गया था,
सूरज मंजिल की ओर मुड गया था,
अब तन्हाइयों में गुज़ारा था,
किनारे पे बदला नज़ारा था !

30 comments:

siddheshwar singh said...

" राक" से क्या आशय है आपका?
कहीं "राख" तो नहीं?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बढ़िया शेर है जी!
उत्तम भाव लिए हुए है!

श्यामल सुमन said...

धुआँ उड़े गर राख से न चिन्ता की बात।
अंधेरा, तन्हाई, मेला अच्छा है आघात।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Murari Pareek said...

sundar ek baar phir dhamaakaa !!!

Anonymous said...

par kinara to tha

M VERMA said...

लाजवाब पेंटिंग --
सुन्दर भाव की रचना

sanjay vyas said...

सिद्धेश्वर जी की टिप्पणी के बाद आपने सुधार किया,ये धैर्य और विनम्रता देखकर अच्छा लगा.बहरहाल पंक्तियाँ अच्छी हैं.

डॉ टी एस दराल said...

पेंटिंग तो वाकई बहुत खूबसूरत है।

সুশান্ত কর said...

NICE !

मनोज कुमार said...

क़ाबिले-तारीफ़ है। बेहद पसंद आई।

मोहन वशिष्‍ठ said...

राख से धुआं उड़ गया था,
सूरज मंजिल की ओर मुड गया था,
अब तन्हाइयों में गुज़ारा था,
किनारे पे बदला नज़ारा था !



LAJWAB PAINTING KE SAATH BAHUT HI SUNDER SHER BEHATRIN

Khushdeep Sehgal said...

पेंटिग से नज़र नहीं हटती, नज़ारे हम क्या देखें...

जय हिंद...

Anonymous said...

कितनी सुन्दर कविता लिखी है .आप हिंदी ब्लॉगजगत के लिए एक नयी रौशनी है .-राजेश स्वार्थी

रश्मि प्रभा... said...

chhote-chhote sher kafi arthpurn hote hain.....

vandana gupta said...

bahut hi gahre bhavon ko sanjoya hai...........badhayi

BK Chowla, said...

After reading your poems,I have developed a taste for poetry.
Thank you

jamos jhalla said...

kaarvaan gujar gayaa gubaar dekhte rahe.achha hai.

Neeraj Kumar said...

सूरज मंजिल की ओर मुड गया था,
अब तन्हाइयों में गुज़ारा था,


वाह उर्मी जी,
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ और अकेलेपन का बेहतरीन खुलासा...

Sumandebray said...

good one

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने । भाव, विचार और शिल्प का सुंदर समन्वय रचनात्मकता को प्रखर बना रहा है । -
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

http://www.ashokvichar.blogspot.com

Anonymous said...

बहुत जल्दी ही ब्लॉग पे डिम्पल का राज़ खुलने वाला है, जो की शादी-शुदा है और अपने को कुंवारी बताती है... और ब्लॉग जगत के कई कम उम्र के लड़के उसके जाल में फंस चुके हैं. ब्लॉग जगत की कई महिलाएं भी डिम्पल उर्फ़ राज की सच्चाई जानतीं हैं और अब दूर हो गयीं हैं उससे.... आप भी जानिये...

http://raj-dreamz.blogspot.com/

बहुत जल्दी ही क्षितिज के पार से पूरी सच्चाई के साथ एक पोस्ट आयेगी..... ब्लॉग जगत का अब तक सबसे खुफिया स्टिंग आपरेशन ...

Unknown said...

babliji waah !
bahut khoob !

achhi kavita............

lekin kamaal hai is par maine subah tippani dee thi, vo kahan gaayab ho gayi ?

राजीव तनेजा said...

सुन्दर...भाव भरी रचना

अजय कुमार said...

तन्हां शाम का खाका खींच दिया

BrijmohanShrivastava said...

उत्तम रचना

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर भाव की रचना

शरद कोकास said...

isame kuch adhyatmika bhav lag rahe hai...

Devi Nangrani said...

manchooti hui pardarshi rachna padkar bahut acha laga

Devi Nangrani

PRAGYAN said...

हम ’प्रज्ञान’ (Pragyan) नामसे एक पत्रिका निकलत हुं असमके तिनसुकिया कलेजसे. सात सालसे निकल रहे हे. सालमे तिनबर निकलते हे। २५०० हर्र्ड कपि हॊते हे। पूर्बॊत्तरके कलेज-इउनिभार्र्सिटिके सिवा इए अजक्ल ओनलाइन उपलब्ध हॊनेके लिये बिश्वभर प्रसिद्ध हॊ रह हे। इस पत्रिका मूलत: द्विभाषिक हे. असमीया और इंलिश्मे. लेकिन, साहित्य मे हम बांल और हिन्दि लेखभी चापते हे। एहा, हमे हिन्दी लेख यादा मिलते नेहि. क्या आपके इये सायरी के शहित और कुच हमे भेजेङे? अगले सँख्या चापनेकॊ गयी. मार्रच महीने मे निकलेङे. डिसेम्वर सँख्या अप हमारे ब्लग या साइटमे पड़ कर बॊलेङे तॊ अच्चा लगेगा।

राहुल यादव said...

बहुत बढ़िया रचना