Tuesday, April 13, 2010


उम्मीद की किरणें यही हैं कह रही,
रास्तों से हो गयी पहचान है !
हम डगर पर चल पड़े है बेझिझक,
मंजिलें ये देखकर हैरान है !
कल तलक तो पाँव भी बेजान थे,
किन्तु अब पूरा सफ़र बेजान है !

48 comments:

Anonymous said...

Guzar rahi hai zindagi kuch is tarah se jaise ki manzil ki talaash hai...

M VERMA said...

कल तलक तो पाँव भी बेजान थे,
किन्तु अब पूरा सफ़र बेजान है !
क्या खूब है और फिर छायाचित्र के क्या कहने

Amitraghat said...

गूढ दर्शन है इस कविता मै ।

प्रणव सक्सेना
amitraghat.blogspot.com

डॉ टी एस दराल said...

उम्मीद की किरणें यही हैं कह रही,
रास्तों से हो गयी पहचान है !
हम डगर पर चल पड़े है बेझिझक,
मंजिलें ये देखकर हैरान है !

वाह , क्या खूब लिखा है ।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

पहली चार पंक्ति बहुत अच्छी लगी ... आशा की बात करती हुई ... !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मुक्तक के शब्द दिल को छू गये!

कडुवासच said...

हम डगर पर चल पड़े है बेझिझक,
मंजिलें ये देखकर हैरान है !
.... बहुत सुन्दर,प्रसंशनीय भाव!!!!

Randhir Singh Suman said...

nice

chitra said...

Appreciate the poet in you!!

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छी प्रस्तुति....

हम डगर पर चल पड़े है बेझिझक,
मंजिलें ये देखकर हैरान है !

इन पंक्तियों के साथ अंतिम पंक्ति के भाव मेल नहीं खा रहे...ऐसा मुझे लग रहा है...यदि कुछ ऐसा होता तो....
कल तलक जो पाँव भी बेजान थे,
अब थकन से पूरी तरह अनजान हैं ....

ये बस मेरा ख़याल है...अन्यथा ना लें...

मनोज भारती said...

संगीता स्वरूप जी से सहमत हूँ ...आखिरी पंक्ति कुछ अटपटी लगी ...

अन्यथा भाव सुंदर हैं । आशा की किरण लिए हुए ।

आभार

Jandunia said...

सुंदर

Arvind Mishra said...

सुन्दर

शरद कोकास said...

पूरा सफर बेजान होने की कल्पना अच्छी लगी ।

संजय भास्‍कर said...

वाह , क्या खूब लिखा है ।

संजय भास्‍कर said...

हमेशा की तरह उम्दा ..बधाई.

Udan Tashtari said...

वाह वाह! बहुत बढ़िया!

Dev said...

बहुत खूब .....

डॉ. मनोज मिश्र said...

वाह , बहुत खूब.

BK Chowla, said...

What can I say--every poem is better than the other.

अलीम आज़मी said...

bahut sunder likha hai apne

Akhilesh pal blog said...

bahoot khoob

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर

रामराम.

रश्मि प्रभा... said...

मंजिलें ये देखकर हैरान है !
कल तलक तो पाँव भी बेजान थे,
किन्तु अब पूरा सफ़र बेजान है !
waah...

दीपक 'मशाल' said...

kafi achchha likha aaj bhi.. badhai

Birendra said...

उम्मीद की किरणें यही हैं कह रही,
रास्तों से हो गयी पहचान है !
हम डगर पर चल पड़े है बेझिझक,
मंजिलें ये देखकर हैरान है !
कल तलक तो पाँव भी बेजान थे,
किन्तु अब पूरा सफ़र बेजान है !

आपकी लेखनी को शत-शत नमन करता हूँ. पहले से कहता रहा हूँ कि कविता और शायरी पर आपकी पकड़ बहुत अलग है. हर बार आप लेखन के नए-नए मोतियों से रचनाओं को संवारती हैं. अद्भुत अभिव्यक्ति है आपकी.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह वाह वाह..!
--क्या बात है..! हौसला बढ़ाने वाली शायरी।

अमिताभ श्रीवास्तव said...

yes, gaharee baat he,..ham agar prastuti yaa kisi muktak, chhand aadi ko dhyaan me rakh kar sochenge to yakinan thoda bahut dosh dhhoondh lenge..kintu bhavo ko shabd dene valaa hi to aapka andaaz he, so behatreen hi kahungaa..

अनामिका की सदायें ...... said...

puri rachna positive soch ka pratibimb darshati he lekin ant ki line me nirasha ka put hai...aisa kyu???samajh nahi aaya.

नीरज गोस्वामी said...

हम डगर पर चल पड़े है बेझिझक,
मंजिलें ये देखकर हैरान है !

वाह...आपकी ये छोटी छोटी बातें मन मोह लेती हैं...लिखती रहिये...
नीरज

daanish said...

km lafz...
poori bhavnaa...
prayaas achhaa hai
hr baar ki tarah ...
aur...
Sangeet ji ki baat maan lene mei
koi buraaee nahi... !!

Neeraj Kumar said...

हम डगर पर चल पड़े है बेझिझक,
मंजिलें ये देखकर हैरान है !

आपकी नयी रचना अत्यंत प्रभावशाली है... एक ललकार है और साथ में अनूठा आत्मविश्वाश भी..

Dimple said...

Hello Babli ji :)

Kya baat hai!!
Brilliant and marvellous :)

"हम डगर पर चल पड़े है बेझिझक,
मंजिलें ये देखकर हैरान है !"

Yeh lines mujhe bahut achhi lagi.

Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

mazaa aa gaya babli ji...

rgds,
surender
http://shayarichawla.blogspot.com/

कविता रावत said...

चंद लब्जों में गहरी बात .... बहुत अच्छा लगा.....
उम्मीद पर दुनिया कायम है गर अच्छा साथ मिल जाय तो सफ़र आसाँ हो जाता है..

रचना दीक्षित said...

वाह!!!खूब लिखा है।शब्द दिल को छू गये!

arvind said...

उम्मीद की किरणें यही हैं कह रही,
रास्तों से हो गयी पहचान है !
हम डगर पर चल पड़े है बेझिझक,
मंजिलें ये देखकर हैरान है !
......शब्द दिल को छू गये.

दिगम्बर नासवा said...

अच्छी रचना .. सुकून मिलता है पढ़ कर ...

Harshvardhan said...

bahut khoob .................

Sumit Pratap Singh said...

jhakas hai...

dipayan said...

सुन्दर रचना । very beautiful and optimistic verses. congrats

अरुणेश मिश्र said...

बेजोड़ ।

पी.एस .भाकुनी said...

कल तलक तो पाँव भी बेजान थे,
किन्तु अब पूरा सफ़र बेजान है !
प्रसंशनीय....प्रसंशनीय.....प्रसंशनीय..

Shri"helping nature" said...

LAZAWAAB MNMOHAK

अंजना said...

अच्छी रचना....

Anonymous said...

सुंदर लिखा है.
बहुत अच्छा लगा.

anil gupta said...

बहुत ही खूब रचना है। किसी ने सही कहा है की
मंजिल उन को ही मिलती है जो मंजिल की तरफ बड़ते है