Friday, September 24, 2010


जाने क्या समझा वो मुझे,
जाने क्या समझी मैं उसे,
फासला नज़र आया...
कुछ क़दमों के साथ से !

46 comments:

मनोज कुमार said...

हम्म! चलो कुछ कदम का साथ तो रहा....

बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
स्वरोदय विज्ञान – 10 आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

chitra said...

It is better tofind out early. Good one Babli..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

साथ चल कर ही पता चलता है फासले का ...बढ़िया

राज भाटिय़ा said...

यही दो कदम जिन्दगी की यादो मै बस गये, बहुत सुंदर

M VERMA said...

फासले भी तो हौसले का ही परिणाम है
सुन्दर

ताऊ रामपुरिया said...

बिल्कुल सही कहा, शुभकामनाएं.

रामराम.

कुमार संतोष said...

बहुत बढियां
इसे पढ़ कर मुझे कुछ पुराना याद आ गया !

sheetal said...

sundar panktiya
jaane kya samjha ki jagah samjhe kardengi to jyaada accha lagega.
waise khubsurat rachna.
aise hi likhte rahiye.

Unknown said...

फ़ासला जब नज़र आने लगता है मोहब्बत में

तो ख़ुश होना चाहिए

ये सोच कर

कि प्यार भले ही अँधा हो, आप अंधे नहीं हैं

हा हा हा हा


बढ़िया शायरी.......बधाई बबली जी !

vandana gupta said...

फासला नज़र आया...
कुछ क़दमों के साथ से !

चंद शब्दों मे बडी गहरी बात कह दी।

विनोद कुमार पांडेय said...

कम शब्दों में बड़ी बात..एक भावपूर्ण रचना..बधाई

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

जाने क्या समझा वो मुझे,
जाने क्या समझी मैं उसे,
फासला नज़र आया...
कुछ क़दमों के साथ से !
बहुत खूब...बधाई.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

gehri rachnaa...khoobsurat!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

होता है! ऐसाभी होता है!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

यब बे दिलों का जहान है,
जरा फासले से मिला करो!
--
आपका शेर अच्छा है जी!

Arvind Mishra said...

जाने क्या वो समझा मुझे,
जाने क्या मैं समझी उसे,
फासले कुछ दरमियाँ हुए
बस यूं ही साथ चलते हुए

जरा इसे भी देखेंगीं ?

Arvind Mishra said...

पसंद आये तो दाद जरूर दीजियेगा :)
आपकी शायरी न जाने मुझे क्यूं कुछ लिख जाने को ललचा देती है ,
जब कि इस विधा में मेरे हाथ तंग हैं :)
वैसे क्रेडिट तो हमेशा मूल रचनाकार का ही है !

रचना दीक्षित said...

बहुत सुंदर,बडी गहरी बात कह दी।

डॉ टी एस दराल said...

समझ समझ की बात को सही समझा । अति सुन्दर ।

संजय @ मो सम कौन... said...

सही लिखा है आपने, वैसे भी अपनों का पता रास्ता चलने से और वास्ता पड़ने से ही चलता है।

SACCHAI said...

"जाने क्या, समझा वो मुझे,
जाने क्या, समझी मैं उसे,
फासला नज़र आया,
कुछ.. क़दमों के साथ से !"
sunder lines aapki "kalam" ko mera sukriya kahena jisne aise khubasurat alfaz kiye hai kaid"

badhai

---- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

"खेल जगत के माफिया "- सुरेश कलमाड़ी tez news channal per bhi upalabdh

Udan Tashtari said...

बढ़िया!

ashish said...

beautiful thought.

हास्यफुहार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

अजय कुमार said...

जल्दी समझ में आये तो ठीक

janta ki aawaz said...

Wo Chalenge Umr Bhar Aap Ke Sath....

Mai Kafi Din Se Bahar Tha .....
Ek Bar Fir Shandar Rachna

ZEAL said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

Akanksha Yadav said...

छोटी पर प्रभावी रचना..बधाई.

Kunwar Kusumesh said...

ब्लॉग पढ़ा,आपकी रचना देखी.बढ़िया .

वैसे दूरियों में भी नजदीकियां होती हैं.
और नजदीकियों में भी दूरियां होती हैं .

कुँवर कुसुमेश
समय हो तो मेरा ब्लॉग देखें:kunwarkusumesh.blogspot.com

रवि धवन said...

फासला नज़र आया...
कुछ क़दमों के साथ से !
बढिय़ा।

Akshitaa (Pakhi) said...

कित्ता अच्छा लिखती हैं आप...बधाई.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत अच्छी लगी यह प्रस्तुति....

BK Chowla, said...

Very nice and really impressed

वीरेंद्र सिंह said...

भई ..वाह ..खूब लिखा है.
आभार

Sumandebray said...

good one and then you continue ... like two paralel lines in perfect harmony and peace

शिवम् मिश्रा said...

बेहद उम्दा ......बहुत खूब !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

कुछ कदम चलकर ही समझ आता है..... हकीकत का आइना लगी रचना

José Ramón said...

Nice capture of this image

Greetings from
Creativity and imagination photos of José Ramón

Rohit Singh said...

हाहाहाहा चंद कदमों ही सबके बीच के फासले दिख जाएं तो फासलों को दूर करने की पहल जल्दी कर लें. नहीं तो अलविदा ही कह दें जल्दी। देरी में तो देर हो जाएगी न।

ZEAL said...

बहुत बढियां

संजय भास्‍कर said...

बढ़िया शायरी.......बधाई बबली जी !

रंजन said...

wonderful!!

vedvyathit said...

tumharie neh ki baris yh amrit ki boonden hain
inhi boondon se apni pyas sb chatk bujhate hain
sundr rchnayen hardik bdhai
dr.vedvyathit@gmail.com

Pushpendra Singh "Pushp" said...

bahut khub likha babli ji

अरुणेश मिश्र said...

लाजबाब ।

सहज साहित्य said...

इन चार पंक्तियों में आपने हृदय ही उड़ेलकर रख दिया । भावों को कम शब्दों में बाँधना कठिन होता है ।सफल अभिव्यक्ति के लिए बधाई