ज़िन्दगी थी अजीब, सब एक ख्वाब थे,
खुशी तो मिली नहीं, पर गम बेहिसाब थे,
चाहत की क्या बात करें तुमसे,
था समन्दर अपना, फिर भी प्यासे थे !
खुशी तो मिली नहीं, पर गम बेहिसाब थे,
चाहत की क्या बात करें तुमसे,
था समन्दर अपना, फिर भी प्यासे थे !
Posted by Urmi at 5:23 PM
37 comments:
बहुत लाजवाब, वाकई सटीक संप्रेषण. शुभकामनाएं.
रामराम.
बबली जी!
आपने अच्छा शेर लिखा है।
"आनन्द स्रोत बह रहा,
जलचर उदास है।
अचरज ये! जल में रह के भी,
मछली को प्यास है।
कभी समय मिले तो
मेरा निम्न ब्लॉग भी देख लें-
http://uchcharan.blogspot.com/
Gam ka hisaab aata to kahte tumse
tamanna-e-khushi ab koi nahi yahan
khoobsurat likha hai....hum log smander se bichde hue sahil hai.es par bhi tanhaee,us par bhi tanhaee....
Shadow and sunshine,
they are like a rhyme.
I wanted only love
But the black shed
Limped and came
They both said
We are
Man and wife.
Babliji, my gift to you. Please continue. Many of us get solace from your Shayari.
kya baat hai..
sunder prastuti..
Beautiful as always....I have always wondered, these sketches that you have on your blog, are they yours?
Hello,
Nice composition.
Pain is what we gain at the end of every lane!
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
गागर में सागर भर दिया आपने।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
चाहत की क्या बात करें तुमसे,
था समन्दर अपना, फिर भी प्यासे थे
आपका शेर लाजवाब हैं बहूत ही सुन्दर............ मधुर प्रेम से ही ऐसी रचनाएं जन्म लेती हैं
उर्मी जी,
जीवन की सच्चाईयों को एक नया आभास देती हुई रचना, अच्छी लगी।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
'था समन्दर अपना, फिर भी प्यासे थे !'
- जैसे भरी दुनिया में कोई अकेला हो.
चाहत की क्या बात करें तुमसे,
था समन्दर अपना, फिर भी प्यासे थे !
बबली जी क्या बात है, बहुत सुंदर शॆर
धन्यवाद
you are getting better by the day..esp the last few posts have been brilliant!! keep this standard always!~!
बेहद संजीदा .............क्या कहे शायद जिन्दगी इसी का नाम है........बधाई
वाह.......बहुत खूब......बबली जी इतना दर्द कैसे ......
ज़िन्दगी थी अजीब, सब एक ख्वाब थे,
urmiji, ye pankti gazab ki he/ jindagi me jyada khvaabo ka saath hi hota he,
खुशी तो मिली नहीं, पर गम बेहिसाब थे,
jab khushi nahi mili to gam hi honge..// kintu jo 'be hisaab' he usane pankti ho lazavaab kar diya.
चाहत की क्या बात करें तुमसे,
था समन्दर अपना, फिर भी प्यासे थे !
ant to he hi achha.
wahh samundar tha apna phir bhi hum pyase the.....kya baat hai bt dost ye pyas hi to aapko auro se juda banati hai...
खुबसुरत अभिव्यक्ति व रचना
मै तो मोहित हूँ आपके चित्रो पर. आपके शेर तो खूबसूरत है ही चित्र तो बस ---
waakai bahut gazab !!
Really a nice piece of writing with beautiful meaning in every line.
Keep writing more, good luck.
Cheers, Sai.
Babliji
Khubsoorat, ati sundar, la jawab, bahut gazab. I note from the vatious comments that your shayari is getting more & more brilliant - I am fortunate to have logged in at the right time !
Bahut Dhanyavad
Ram
हमेशा की तरह लाजवाब
lajawaab yaar Babli......how sweet!!!
duniya me sach kahne wale bahut kam hai , unme se aap bhi ek hai ....achhi post ke liye badhai....
"बहुत ही सुन्दर...."
बहुत खुब...
विरोधाभास ही जिंदगी की कसौटी है, सच्चाई है।
bahut sundar laga ise padkar... aapka shayariyo ka guldasta bahut pasand aa raha hai.....
चाहत की क्या बात करें तुमसे,
था समन्दर अपना, फिर भी प्यासे थे !
बबली जी ,
अच्छी लगी ये पंक्तियाँ ...
हेमंत कुमार
aapki is udaasi mai bhee underlined POINT hai .
i hope there is no hidden agendaa?
jhallevichar.blogspot.com
angrezi-vichar.blogspot.com
jhalli-kalam-se
nice one..
lekin samandar se vaise bhi aaj tak kis ki pyas bujhi hai babali ji???
बब्ली जी,
आप के Blogg पे आने का इत्तेफ़ाक हुया,पाया कि ’मुक्ताकों’ की मलिका हैं आप.इतने सुन्दर
’मुख्तसर शेर’ यकीनन कमाल है,सिर्फ़ एक शेर में ही पुरी दास्तां सुना देना.
Nice expressions,happy Blogging.
चाहत की क्या बात करें तुमसे,
था समन्दर अपना, फिर भी प्यासे थे !
bahut mast baat kahi aapne!!!!!
बहुत खूबसूरत लिखा है आपने ,एक पुरानी नज्म याद दिला दिया-
एक समुन्दर नें आवाज़ दी -थोडा पानी पिला दीजिये.
Is this your creation? Beautiful :)
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