Tuesday, February 2, 2010


समंदर की लहरों में छाई जवानी,
धरा में बसी है दिलों की रवानी,
सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर,
ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर !

39 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

खारा है पानी नही है रवानी,
समन्दर की लहरों में सिमटी कहानी।
न जाने सिमेटे है किस-किस के आँसू,
ये आँसू किसी दुःख की हैं निशानी!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कहाँ छूटती है जिंदगी की परेशानी
खेल चाहे जितने खेले जिंदगानी ,

बहुत खूब लिखा है शेर..बहुत बढ़िया

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

बबली जी आदाब
समंदर की लहरों में छाई जवानी,
धरा में बसी है दिलों की रवानी
ये शेर तो ग़ज़ल की बहर-वज्न में ही हो गया
बहुत सुंदर, मुबारक हो

Anonymous said...

"सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर"
बिलकुल सही कहा है.

dipayan said...

बहुत खूब लिखा आपने ।

मनोज कुमार said...

अच्छी भावना।

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब लिखा है शेर..बहुत बढ़िया

अजय कुमार said...

अच्छी रचना ,एक निवेदन है (गुस्ताखी माफ )मेरे विचार से एक संसोधन की गुंजाइश है-
'ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर ! '
इसको -’ छोड़कर ज़िन्दगी की सारी परेशानी ’ कर दीजिये ।

दिगम्बर नासवा said...

समुंदर की लहरें तो सब का स्वागत करती हैं ....... उसकी मिट्टी में खेलने का मज़ा कुछ और ही है ..........

Randhir Singh Suman said...

nice

रवि धवन said...

ईश्वर के रंगमंच पर सभी अपना-अपना खेल खेल रहे हैं...बहुत खूब लिखा है आपने 'सभी खेलते हैं खेल इस जमीन पर, जिंदगी की सारी परेशानियों को छोड़कर'।

अमिताभ श्रीवास्तव said...

sahi he..
jindagi ki pareshani bhi jindagi ki tarah jee rahi he.

डॉ टी एस दराल said...

अजय कुमार जी का सुझाव अच्छा है।
सुन्दर भाव।

M VERMA said...

जिन्दगी की परेशानियों को कुछ क्षण भूलना ही बेहतर होता है वर्ना जिन्दगी जीने से भी महरूम हो जायेगी.
सुन्दर शायरी

Neeraj Kumar said...

सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर,


bahut hi sundar pankti hai yah...
is ke bhav rachna ke hisaab se badalti jayegi...

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर रचना.

रामराम.

daanish said...

जहां भी कहीं आपने कुछ लिखा है
वही बात सब ने मुहोब्बत से मानी

b a d h a a e e e e

Dev said...

उत्तम रचना ........

Udan Tashtari said...

बढ़िया है.

मनोज भारती said...

आपकी चार लाइनें, चार लाइनें नहीं होती
जिंदगी की खूबसुरत इबारतें होती हैं !!!

उम्दा

Narendra Vyas said...

शायद यहीं कहीं है वो कहानी
जो खो गई, जिनको लहरें डुबो गई
फिर भी जाने क्यूं,
ढूंढता हूं उन कदमों के निशां
जहां से शुरू हुई थी कहानी.............
सुन्दर, अति सुन्दर भाव, आभार!!

Unseen India Tours said...

Beautiful words !!

SACCHAI said...

" sahi .... bahut hi khub likha aapne ."

---- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

मोहन वशिष्‍ठ said...

समंदर की लहरों में छाई जवानी,
धरा में बसी है दिलों की रवानी,
सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर,
ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर !

wah ji waah bahut khub sher very nice keep it up

Kulwant Happy said...

चार पंक्तियाँ, लेकिन कह बहुत कुछ जाती हैं।

Sanjeet Tripathi said...

kya bat hai, javani au ravani se lekar pareshani,dar-asal yah panktiyan, hakikathain...


bahut badhiya

Sumandebray said...

Very Nice

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत खूब लिखा है शेर..बहुत बढ़िया.....


नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

ati uttam!

BK Chowla, said...

You not only reproduce lovely pictures, you write so well.

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बबली जी
रचना काबिले तारीफ है
आभार ................

kshama said...

समंदर की लहरों में छाई जवानी,
धरा में बसी है दिलों की रवानी,
सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर,
ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर
Babli, aap kaise har baar gagar me sagar sama letee hain?

निर्मला कपिला said...

सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर,
ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर
वाह क्या बात है बधाई

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां ।

ARUNA said...

Hai Babli, i'm back once again and as usual i find ur poetry impressive. It mesmarises me always!

RAJNISH PARIHAR said...

बबली जी,आप बहुत ही अच्छा लिख रही है..कृपया कुछ 'sad ' शायरी भी लिखिए...

admin said...

खेलते हैं खेल सभी इस जमीन पर
गोया गम सारे जा चुके हैं उन्हें छोड़कर
मिलने बिछुड़ने का गम उन्हें सताता नहीं
वैसे भी हर लहर साहिल पर आकर टूट जाता नहीं

ज्योति सिंह said...

समंदर की लहरों में छाई जवानी,
धरा में बसी है दिलों की रवानी
bahut khoob ,pyaari aapki tasvir ki tarah

दीनदयाल शर्मा said...

दीनदयाल शर्मा की तीन कविताएँ

(1)
अमृता ने ही कहा
चलो मिलकर चलते हैं
चलो मिलकर जीते हैं...
कितना मुश्किल है
पहल करना
महान थी अमृता.

(2)
किसे नहीं अच्छा लगता फूल
सुन्दरता सबको भाती है
आदमी भले ही
फूल नहीं बन पाता
पर जब
वह मुस्कुराता है
खिलखिलाता है
तब होती है बौछार
भांति - भांति के फूलों से
महक उठता है वातावरण
बहने लगती है भिन्नी भिन्नी बयार
और आसमान में दिखने लगता है
सतरंगी इन्द्रधनुष ...

(3)
कुछ क़ानून की
कैद में
और कुछ
मुहब्बत में
कैद हैं.
हम मर कर भी
जी जाएँ
जीना इसी का नाम है.

साहित्य संपादक ( मानद )
टाबर टोली, हनुमानगढ़ जं. -335512
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