समंदर की लहरों में छाई जवानी,
धरा में बसी है दिलों की रवानी,
सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर,
ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर !
धरा में बसी है दिलों की रवानी,
सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर,
ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर !
Posted by Urmi at 12:53 AM
39 comments:
खारा है पानी नही है रवानी,
समन्दर की लहरों में सिमटी कहानी।
न जाने सिमेटे है किस-किस के आँसू,
ये आँसू किसी दुःख की हैं निशानी!!
कहाँ छूटती है जिंदगी की परेशानी
खेल चाहे जितने खेले जिंदगानी ,
बहुत खूब लिखा है शेर..बहुत बढ़िया
बबली जी आदाब
समंदर की लहरों में छाई जवानी,
धरा में बसी है दिलों की रवानी
ये शेर तो ग़ज़ल की बहर-वज्न में ही हो गया
बहुत सुंदर, मुबारक हो
"सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर"
बिलकुल सही कहा है.
बहुत खूब लिखा आपने ।
अच्छी भावना।
बहुत खूब लिखा है शेर..बहुत बढ़िया
अच्छी रचना ,एक निवेदन है (गुस्ताखी माफ )मेरे विचार से एक संसोधन की गुंजाइश है-
'ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर ! '
इसको -’ छोड़कर ज़िन्दगी की सारी परेशानी ’ कर दीजिये ।
समुंदर की लहरें तो सब का स्वागत करती हैं ....... उसकी मिट्टी में खेलने का मज़ा कुछ और ही है ..........
nice
ईश्वर के रंगमंच पर सभी अपना-अपना खेल खेल रहे हैं...बहुत खूब लिखा है आपने 'सभी खेलते हैं खेल इस जमीन पर, जिंदगी की सारी परेशानियों को छोड़कर'।
sahi he..
jindagi ki pareshani bhi jindagi ki tarah jee rahi he.
अजय कुमार जी का सुझाव अच्छा है।
सुन्दर भाव।
जिन्दगी की परेशानियों को कुछ क्षण भूलना ही बेहतर होता है वर्ना जिन्दगी जीने से भी महरूम हो जायेगी.
सुन्दर शायरी
सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर,
bahut hi sundar pankti hai yah...
is ke bhav rachna ke hisaab se badalti jayegi...
बहुत सुंदर रचना.
रामराम.
जहां भी कहीं आपने कुछ लिखा है
वही बात सब ने मुहोब्बत से मानी
b a d h a a e e e e
उत्तम रचना ........
बढ़िया है.
आपकी चार लाइनें, चार लाइनें नहीं होती
जिंदगी की खूबसुरत इबारतें होती हैं !!!
उम्दा
शायद यहीं कहीं है वो कहानी
जो खो गई, जिनको लहरें डुबो गई
फिर भी जाने क्यूं,
ढूंढता हूं उन कदमों के निशां
जहां से शुरू हुई थी कहानी.............
सुन्दर, अति सुन्दर भाव, आभार!!
Beautiful words !!
" sahi .... bahut hi khub likha aapne ."
---- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
समंदर की लहरों में छाई जवानी,
धरा में बसी है दिलों की रवानी,
सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर,
ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर !
wah ji waah bahut khub sher very nice keep it up
चार पंक्तियाँ, लेकिन कह बहुत कुछ जाती हैं।
kya bat hai, javani au ravani se lekar pareshani,dar-asal yah panktiyan, hakikathain...
bahut badhiya
Very Nice
बहुत खूब लिखा है शेर..बहुत बढ़िया.....
नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....
ati uttam!
You not only reproduce lovely pictures, you write so well.
बबली जी
रचना काबिले तारीफ है
आभार ................
समंदर की लहरों में छाई जवानी,
धरा में बसी है दिलों की रवानी,
सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर,
ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर
Babli, aap kaise har baar gagar me sagar sama letee hain?
सभी खेलते हैं खेल इस ज़मीन पर,
ज़िन्दगी की सारी परेशानियों को छोड़कर
वाह क्या बात है बधाई
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां ।
Hai Babli, i'm back once again and as usual i find ur poetry impressive. It mesmarises me always!
बबली जी,आप बहुत ही अच्छा लिख रही है..कृपया कुछ 'sad ' शायरी भी लिखिए...
खेलते हैं खेल सभी इस जमीन पर
गोया गम सारे जा चुके हैं उन्हें छोड़कर
मिलने बिछुड़ने का गम उन्हें सताता नहीं
वैसे भी हर लहर साहिल पर आकर टूट जाता नहीं
समंदर की लहरों में छाई जवानी,
धरा में बसी है दिलों की रवानी
bahut khoob ,pyaari aapki tasvir ki tarah
दीनदयाल शर्मा की तीन कविताएँ
(1)
अमृता ने ही कहा
चलो मिलकर चलते हैं
चलो मिलकर जीते हैं...
कितना मुश्किल है
पहल करना
महान थी अमृता.
(2)
किसे नहीं अच्छा लगता फूल
सुन्दरता सबको भाती है
आदमी भले ही
फूल नहीं बन पाता
पर जब
वह मुस्कुराता है
खिलखिलाता है
तब होती है बौछार
भांति - भांति के फूलों से
महक उठता है वातावरण
बहने लगती है भिन्नी भिन्नी बयार
और आसमान में दिखने लगता है
सतरंगी इन्द्रधनुष ...
(3)
कुछ क़ानून की
कैद में
और कुछ
मुहब्बत में
कैद हैं.
हम मर कर भी
जी जाएँ
जीना इसी का नाम है.
साहित्य संपादक ( मानद )
टाबर टोली, हनुमानगढ़ जं. -335512
मोब : 09414514666
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