न जाने ये रात इतनी तन्हा क्यूँ है,
हमें अपनी किस्मत से शिकायत क्यूँ है,
अजीब खेल खेला है किस्मत ने,
आख़िर हमें उसीसे मोहब्बत क्यूँ है?
हमें अपनी किस्मत से शिकायत क्यूँ है,
अजीब खेल खेला है किस्मत ने,
आख़िर हमें उसीसे मोहब्बत क्यूँ है?
Posted by Urmi at 6:09 AM
38 comments:
लाजवाब। क़िस्मत का खेल ही न्यारा होता है!
tanhaai ki koi shikaayat
nahin honi chaahiye...
bala ki khoobsoorat hain aap ..
kya aapse kisi ko mohabbat
nahin honi chaahiye ?
______
____________
_______bhai ye toh baat
PASAND NAHIN AAYI
ha ha ha ha ha
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
रातों की तन्हाई को चाँद तारों से बाँटो,
किस्मत की शिकायत को दूर भगाओ,
किस्मत के खेल तो होते ही हैं निराले,
बस उसकी मोहब्बत में गुम हो जाओ.
बहुत सुंदर बबली जी!
बहुत सुन्दर मुक्तक है!
--
किस्मत के खेल निराले...!
बढियां है
सचमुच किस्मत के खेल निराले हैं । सुन्दर रचना ।
मुहब्बत में क्यों की जगह कहा होती..
ये तो ऐसी बला है..जो बिना क्यों कैसे के न जाने कैसे हो जाती है.फिर शिकायत तन्हाई की या दुहाई किस्मत की देते रहिये..मुहब्बत अपना गुल खिलाते रहती है.
अगेन उम्दा पोस्ट.
आख़िर हमें उसीसे मोहब्बत क्यूँ है?
Kabhi kisi ko mila hai is sawaal ka jawaab? Waise sawal prastut badee hee sundarta se kiya hai!
bahut sahi likha urmi ji behatrin
bahut hi sundar ser.......
Good to start a day with your poem
बहुत उम्दा भाव...बधाई.
Kismat, we blame it we like it. Life is a puzzle. Good one Babli.
खूबसूरती से लिखे जज़्बात
न जाने ये रात इतनी तन्हा क्यूँ है,
हमें अपनी किस्मत से शिकायत क्यूँ है,
niceeeeeeeeeee.
behad sundar
अजीब खेल खेला है किस्मत ने,
आख़िर हमें उसीसे मोहब्बत क्यूँ है
बस इतना बताना ही सबसे मुश्किल काम है ... अच्छा लिखा है ...
Ye Rat aur Khel dono ek jaise hi hain
:) exactly my sentiments
bhagwaaan bhi kabhi kabhi acha khel khelte hain hamare saath
Bikram's
तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको,
मेरी बात और है, मैंने तो मोहब्बत की है!
मोहब्बत पूछ कर नहीं की जाती
बहुत सुंदर..बढ़िया शेर...बधाई
Lovely lines to ponder on...
सुन्दर रचना ...बधाई
बहुत प्यारी ग़ज़ल....अच्छी लगी.
____________________
'पाखी की दुनिया' के 100 पोस्ट पूरे ..ये मारा शतक !!
সখী ভালোবাসা কারে কয়
সেকি শুধুই যাতনাময়
ভালোবাসা বোধহয় জ্বর হওয়ার মতো | আসলে আমাদের মনের মধ্যে কোথাও জানিনা একটা চুম্বক লাগানো আছে | যাকে চাই সে এসে দাড়ায় অলক্ষে |
খুব ভালো লাগে তোমার কবিতা পড়তে তবে সময় লাগে বুঝতে হিন্দি ভাষা ভারী দুর্বল আমার |
এবার তোমার রান্নার ব্লগে যাই, দেখি মেয়ে আমাদের কি রেধেছে | তোমার কাকু এবার লেখা চালু করছে আমি আরো কিছু কবিতা লিখেছি আমার ব্লগে পড়তে পারো সময় পেলে|
পুজোর আশিস নিও তুমি আর্ সঞ্জয়
वाह भई बबली जी बल्ले बल्ले
Din to kher kaise bhi nikal jaata hain, sare jazbaat raat ki tanhai main to dil main umda karte hain aur phir hum yahi socha karte hain.
NA JAANE RAAT ITNI TANHA KYUN HAIN,
HAME APNI KISMAT SE SHIKAYAT KYUN HAIN,
AJEEB KHEL KHELA HAIN KISMAT NE,
AAKHIR HAME USI SE MOHABBAT KYUN HAIN?
bahut sundar likha aapne.
bahut hi sundar abhvyakti.kismat to bar bar apnarang badalta rahta hia tabhi to lakh use kosne ke baad bhi hame usi se samjhouta karna padta hai
bahut hi khoobsurat sher-------
poonam
वाह, बहुत खूब। सवाल उठाती पंक्तियों में मीठे दर्द का अहसास भी है।
बेहद संजीदगी से लिखा आपने...बधाई.
________________
'शब्द-सृजन की ओर' पर आज निराला जी की पुण्यतिथि पर स्मरण.
खूबसूरत रचना के लिए बधाई !
विजय दशमी की शुभकामनायें !
_____________________
मेरा जन्मदिवस - २ (My Birthday II)
अजीब खेल खेला है किस्मत ने,
आख़िर हमें उसीसे मोहब्बत क्यूँ है
bahut hee khoobsurat line ..dil ko chhoo gayi
dussehra ki hardik subhkamnai.
यही तो खेल है जहाँ शिकयत वहीँ मुहब्बत, जहाँ मुहब्बत वहीँ शिकायतें...........
सुन्दर रचना.....
हार्दिक आभार..........
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाया है आपने। हर कोई यही सवाल करता है पर जवाब किसी को नहीं मिलता।
Post a Comment