ठहर गया था कोई वक़्त की निशानी बनके,
वो भी बह गया आज आँखों का पानी बनके,
एक उम्र से संभाला था हमने जो दरिया,
बहा ले गया वो उसे एक रात तूफानी बनके !
वो भी बह गया आज आँखों का पानी बनके,
एक उम्र से संभाला था हमने जो दरिया,
बहा ले गया वो उसे एक रात तूफानी बनके !
41 comments:
एक और बेहद उम्दा शेर ... लगे रहिये उर्मी जी ... एक के बाद एक ... जय हो !
पहली दोनों पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर बन पड़ी हैं और याद रह जाती हैं-
ठहर गया था कोई वक़्त की निशानी बनके
वो भी बह गया आज आँखों का पानी बनके
सुंदर शे'र
सुन्दर पंक्तिया...उम्दा शेर ....
वाह वाह जी वाह वाह!!
बेहद बढ़िया .
सादर
बहुत ही बेहतरीन शेर
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वाह क्या बात है ... बेहतरीन शेर !
वाह , बहुत सुन्दर लिखा है ।
excellent..
Nice :)
हमारे भी दिल से निकला वाह वाह .
बहुत खूब...
waah !
kya baat hai..vaah...thahar gaya tha koi vaqt ki nishaani ban ke.umda panktiyan.charcha manch ka aabhar jisne sheron ki dunia me pravesh karaya.bahut achche sher likhti hain aap.
वाह ..बहुत खूब ..
waah
bahut sundar sher, dil chhone ke poori gazal bhi nakaphi hoti hai aur jo utar hai dil men do laaine bhi bahut hain.
जज्बातों का तूफ़ान कुछ ऐसा ही होता है
सुन्दर पंक्तियाँ
"ठहर गया था कोई वक़्त की निशानी बनके,
वो भी बह गया आज आँखों का पानी बनके,"
वाह क्या गहरी सोच की बात की है आप ने इन चाँद लाइनों में..
बहुत खूब
आशु
एक उम्र से संभाला था हमने जो दरिया,
बहा ले गया वो उसे एक रात तूफानी बनके !
उम्दा शेर ...सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
बढ़िया कत्ता कहा है आपने....लाजवाब!
-----देवेंद्र गौतम
ठहर गया था कोई वक़्त की निशानी बनके,
वो भी बह गया आज आँखों का पानी बनके,
एक उम्र से संभाला था हमने जो दरिया,
बहा ले गया वो उसे एक रात तूफानी बनके !
bahut sundar kahan hai aapkee. badhai sweekaren
ठहर गया था कोई वक़्त की निशानी बनके,
वो भी बह गया आज आँखों का पानी बनके,
वाह उर्मिल जी,
क्या कहने, बहुत खूबसूरत शेर है ! दिल को छू गया !
वाह ... बहुत खूब ।
bahut hi sunder ..gahan bhaav ...
badhaii .
वाह ..वाह कह उठे हम भी
वाह , बहुत सुन्दर लिखा है ।
MAM BAHUT SUNDAR PANKTIYAN LIKHI HAIN. . . . . . . .
FOLLOWER KA TIHRA SATAK MUBARAK HO.
JAI HIND JAI BHARAT
बहुत बेहतरीन..
उर्मि जी
सादर सस्नेह अभिवादन !
ठहर गया था कोई वक़्त की निशानी बनके
वाह वाऽऽह ! क्या बात है …
मार्च के बाद की आपकी हर पोस्ट पढ़ी , तमाम रचनाओं के लिए बधाई और मुबारकबाद !
हार्दिक शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut khoobsurat.....
ठहर गया था कोई वक़्त की निशानी बनके,
वो भी बह गया आज आँखों का पानी बनके,
एक उम्र से संभाला था हमने जो दरिया,
बहा ले गया वो उसे एक रात तूफानी बनके !
bahut khoobsurat rachna
bahut hi khoob likha aapne
nice blog
mere blog par bhi aaiyega aur pasand aaye to follow kariyega
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बहुत खूब .. क्या बात कही है ... लाजवाब ....
वाह, क्या बात है.
kya baat kahi hai.....
ठहर गया था कोई वक़्त की निशानी बनके,
वो भी बह गया आज आँखों का पानी बनके...
वाह बबली जी,
सच,
इन दो पंक्तियों में ही कितना कुछ कह दिया गया...
सुंदर मुक्तक, बधाई.
वाह वाह - अति सुंदर
आपके ब्लॉग पर पढ़ी गई शायरी में सर्वश्रेष्ठ - हार्दिक शुभकामनाएं
सारा दर्द दो शेरों में उड़ेल दिया !
सुन्दर अनुभव !
आपने भी लगता है यह कविता लिखी है किसी की दिवानी बनके।
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
मैं इस ब्लॉग को फालो कर रहा हूं। अगर आप चाहें तो मेरा ब्लॉग फालो कर सकते हैं।
पहली बार आपको पढ़ रही हूँ उर्मी जी बहुत सुंदर शब्द हैं बधाई
सादर
अमिता कौंडल
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